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colonelrajyavardhanrathore · 4 months ago
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कैबिनेट मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ साहब का एक संकल्प झोटवाड़ा का हो कायाकल्प
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का संकल्प
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ भारतीय राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्पों और कर्मठता से देश की सेवा में अपना योगदान दिया है। उनकी प्रेरणा से देशवासियों को नई ऊंचाइयों की दिशा मिली है। उनके इसी संकल्प के तहत ‘झोटवाड़ा का हो कायाकल्प’ एक महत्वपूर्ण पहल है जो लोकतंत्र और समाज के विकास को समर्पित है।
झोटवाड़ा क्या है?
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कायाकल्प की उपाधि
कायाकल्प का अर्थ होता है जीवन में नई दिशा देना। कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ साहब ने अपने इस संकल्प में झोटवाड़ा को एक आदर्श स्थान देने का संकल्प किया है। इसके तहत, स्थानीय विकास को गति देने, सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने और सामाजिक अन्यायों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का विशेष द्रष्टांत है।
झोटवाड़ा में शिक्षा और स्वास्थ्य
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ साहब का संकल्प झोटवाड़ा के विकास में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष महत्व दिया गया है। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ियों को ज्ञान और उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन किया है और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार में भी उनकी निकटता का प्रयास किया है।
नए दिशानिर्देश और उद्देश्य
कर्नल साहब अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक सुविधाजनक नेतृत्व प्रस्तुत करते हैं। उनके संकल्पों और प्रेरणाओं ने उन्हें एक प्रेरणा स्त्रोत बना दिया है जिसने न केवल उन्हें बल्कि उनके चाहने वालों को भी प्रेरित किया है। उनकी नीतियाँ और क्रियाकलाप उनके लक्ष्यों की ओर सीधे संकेत करते हैं और एक सुसंगत समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नवाचार और प्रगति
कर्नल साहब के संकल्प ने झोटवाड़ा में एक नयी सोच और नए दिशानिर्देश स्थापित किए हैं। उनके नेतृत्व में शहर ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की है और एक नई परिभाषा दी है। उनके कार्यकाल में नए और सर्वोत्तम तकनीकी उपायों ने विकास को गति दी है और उनकी नीतियाँ ने शहर को गौरवान्वित किया है।
झोटवाड़ा के प्रति समुदाय की जागरूकता बढ़ाना
झोटवाड़ा की समस्या को समझने के लिए हमें समुदाय को जागरूक करना होगा। इसके लिए हमें शिक्षा के माध्यम से, सोशल मीडिया के जरिए, और विभिन्न संगठनों ��र संस्थाओं के साथ सहयोग करके समुदाय में जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्य करना होगा। इस प्रक्रिया में, कर्नल साहब के संकल्प और उनके दृढ़ स्थान का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ के सामाजिक कार्य
झोटवाड़ा में कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ साहब के सामाजिक कार्य का विशेष उल्लेख होना चाहिए। उन्होंने समुदाय के विकास के लिए अनेक पहल की हैं, जिनमें गांवीय विकास, युवा संघटनाओं का समर्थन, और महिला सशक्तिकरण शामिल है। उनकी इसी प्रेरणा से झोटवाड़ा एक विशेष स्थान पर है जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से विकसित हो रहा है।
समाप्ति
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ साहब के संकल्प ‘झोटवाड़ा का हो कायाकल्प’ ने एक नयी पहचान बनाई है, जो लोकतंत्र और सामाजिक समानता के माध्यम से समृद्धि की दिशा में गति दे रहा है। इस प्रयास में उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलों से सबको नई ऊँचाइयों की दिशा में प्रेरित किया है।
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sharpbharat · 13 days ago
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Jamshedpur election : चुनावी प्रचार-प्रसार के दौरान विभिन्न वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर शत्रुता या घृणा उत्पन्न करने पर की जाएगी विधि सम्मत कार्रवाई, आम नागिरकों से प्रशासन ने की यह अपील
जमशेदपुर : चुनावी प्रचार-प्रसार के दौरान किसी भी राजीनितिक दल, प्रत्याशी या उनके समर्थकों द्वारा आपसी शत्रुता या घृणा उत्पन्न करने वाले वाक्य व शब्द या सोशल मीडिया कंटेट जिसमें फोटो व वीडियो के माध्यम से आपसी सौहार्द्र बिगाड़ने की स्थिति उत्पन्न की जाती है तो संबंधित के विरूद्ध विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी. कोई भी व्यक्ति जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत चुनाव के संबंध में…
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digitalramsharma · 2 months ago
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देश मेरे मुझे याद रखना
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी देशभक्ति: एक समर्पित नेतृत्व-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर एक विशेष स्थान रखता है। उनकी देशभक्ति, संजीवनी शक्ति और कड़ी मेहनत ने उन्हें न केवल एक प्रभावशाली नेता, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी बना दिया है। मोदी के नेतृत्व में भारत ने कई महत्वपूर्ण उन्नति और परिवर्तन देखे हैं, जो उनकी गहरी देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की निशानी हैं। इस लेख में, हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति को विस्तृत रूप से समझेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे उनके प्रयासों ने भारत को एक नई दिशा दी है।
देशभक्ति का मूल मंत्र- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति उनकी राजनीति का मूल आधार है। उनका जीवन एक साधारण पृष्ठभूमि से शुरू हुआ, लेकिन उनकी सोच और दृष्टिकोण ने उन्हें देश की राजनीति के उच्चतम शिखर तक पहुंचाया। मोदी का यह मानना है कि एक नेता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपने देश की सेवा करना और उसके उत्थान में योगदान देना है। उन्होंने हमेशा देश की समस्याओं और चुनौतियों को प्राथमिकता दी है और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाए हैं।
स्वतंत्रता संग्राम की यादें- प्रधानमंत्री मोदी की देशभक्ति केवल उनके राजनीतिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है। उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम के योगदान की यादों को भी जीवंत करता है। वे अक्सर स्वतंत्रता सेनानियों और उनके बलिदानों की बात करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मोदी का यह मानना है कि स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की याद को संरक्षित रखना और उनके संघर्ष की महत्वता को समझाना हमारी जिम्मेदारी है।
प्रधानमंत्री मोदी और उनके प्रमुख योजनाएं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान कई योजनाएं और पहलें शुरू की गई हैं जो देशभक्ति के प्रतीक के रूप में देखी जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख योजनाएं निम्नलिखित हैं:
स्वच्छ भारत मिशन: इस योजना के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने का लक्ष्य रखा। यह केवल एक सफाई अभियान नहीं था, बल्कि एक व्यापक सामाजिक आंदोलन था जो देशवासियों को अपने देश के प्रति जिम्मेदार और जागरूक बनाने का प्रयास था।
मेक इन इंडिया: इस पहल का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना है। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि आत्मनिर्भरता और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने से देश की आर्थ��क स्थिति मजबूत होगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
डिजिटल इंडिया: इस योजना के अंतर्गत, मोदी सरकार ने डिजिटल प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया और सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन लाने का प्रयास किया। इसका उद्देश्य देश की प्रशासनिक प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाना था।
जन धन योजना: इस योजना के तहत, प्रधानमंत्री मोदी ने गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों को वित्तीय समावेशन के लाभ प्रदान किए। इससे लाखों भारतीयों को बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिला और देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिली।
आयुष्मान भारत: इस स्वास्थ्य योजना के तहत, मोदी सरकार ने लाखों गरीब परिवारों को मुफ्त चिकित्सा बीमा की सुविधा प्रदान की। यह योजना स्वास्थ्य देखभाल को हर भारतीय के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
देशभक्ति के प्रतीक- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति का प्रतीक उनके व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में देखने को मिलता है। वे अक्सर भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों की बात करते हैं और इन्हें बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। मोदी ने कई बार देशवासियों को भारतीय संस्कृति के महत्व की याद दिलाई है और इसे संरक्षण करने का आह्वान किया है। उनकी सार्वजनिक भाषणों में भारतीय इतिहास, संस्कृति और गौरव के अंश हमेशा शामिल रहते हैं। वे राष्ट्रीय पर्वों और महापुरुषों के योगदान को सम्मानित करते हैं और उनके प्रयासों को जनमानस में प्रोत्साहित करते हैं। उनका यह दृष्टिकोण एक मजबूत देशभक्ति की भावना को दर्शाता है।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण- प्रधानमंत्री मोदी की देशभक्ति केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देखी जा सकती है। उन्होंने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने और देश की आर्थिक और सामरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उनके नेतृत्व में भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और वैश्विक साझेदारों के साथ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। मोदी ने अपने विदेश दौरों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रसार किया और भारत की महानता को विश्व स्तर पर प्रस्तुत किया। उनके इन प्रयासों से न केवल भारत की वैश्विक छवि को सकारात्मक दिशा मिली, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की महत्वता भी बढ़ी।
जनता के साथ जुड़ाव- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जनता के साथ सीधा जुड़ाव भी उनकी देशभक्ति की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। वे अक्सर जनता की समस्याओं और चिंताओं को सुनते हैं और उनके समाधान के लिए योजनाएं तैयार करते हैं। मोदी ने अपने प्रशासन के दौरान जनता के बीच में जाकर उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश की है और उनका समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। उनकी यह सक्रियता और जनसेवा की भावना जनता को प्रेरित करती है और देशभक्ति की एक नई भावना को जन्म देती है। मोदी का यह प्रयास है कि हर भारतीय को एक मजबूत और समृद्ध देश का हिस्सा बनने का मौका मिले।
निष्कर्ष- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति उनके जीवन और कार्यों का एक अभिन्न ��िस्सा है। उनके नेतृत्व में भारत ने कई महत्वपूर्ण पहल और योजनाओं के माध���यम से देश के विकास और उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। मोदी की देशभक्ति केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके कार्य और उनकी दृष्टि भी इस देशभक्ति को साकार करती है। उनकी योजनाएं, उनकी दृष्टि और उनकी जनसेवा की भावना ने उन्हें एक प्रेरणादायक नेता बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभक्ति भारत के भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और उनका नेतृत्व देश को एक नई दिशा और उद्देश्य प्रदान कर रहा है।
देश मेरे मुझे याद रखना - https://youtu.be/e_r9fXZVMvQ
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stressmanagement01 · 7 months ago
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आयुर्वेद का पुनर्जागरण
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भारतीय परंपरागत चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद, वर्तमान में एक महत्वपूर्ण और गरिमामय चरम स्थिति की ओर अग्रसर है। आज की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में, आयुर्वेद का पुनर्जागरण एक विशेष महत्ता रखता है जो भारतीय समाज को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य में संतुलन प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है।
प्राचीन आयुर्वेदिक शास्त्रों में बताया गया है कि व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से आहार, व्यायाम, ध्यान, और आचार-व्यवहार का महत्व है। आयुर्वेद न केवल रोगों का उपचार करता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। यह शास्त्र न केवल उपचार के लिए वनस्पतियों का उपयोग करता है, बल्कि व्यक्ति को अपनी संपूर्ण जीवनशैली के संरक्षण के लिए भी प्रेरित करता है।
आयुर्वेद का पुनर्जागरण न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी आयुर्वेदिक प्रणाली के लोकप्रिय होने का परिणाम है। भारतीय संस्कृति और विज्ञान के इस मेलजोल के कारण, आयुर्वेद विश्व स्तर पर स्वास्थ्य और वेलनेस के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम बन गया है।
आयुर्वेद का पुनर्जागरण
आयुर्वेद के पुनर्जागरण के पीछे कई कारण हैं। पहला, आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के अंधविश्वासों और साइड इफेक्ट्स की वजह से, लोग अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए प्राकृतिक उपचारों की ओर मुख मोड़ रहे हैं। दूसरा, आयुर्वेद की योग्यता और उसके व्यापक विवेचन के कारण, लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं।
वैज्ञानिक मान्यता:
आयुर्वेद के पुनर्जागरण की वैज्ञानिक मान्यता उसकी प्राचीन साक्ष्य और वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्राप्त हुई है।
वैज्ञानिक समुदाय ने आयुर्वेद के रोग प्रतिरोधक क्षमता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और रोगों के निदान में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझा है।
आयुर्वेद के पुनर्जागरण के साथ, वैज्ञानिक समुदाय ने आधुनिक चिकित्सा की दिशा में एक अद्वितीय योगदान किया है, जिससे समाज को समृद्धि और स्वास्थ्य की दिशा में अधिक प्रामाणिक विकल्प ��िले।
वैज्ञानिक अनुसंधानों ने आयुर्वेदिक उपचारों की कार्यक्षमता और सुरक्षा को स्पष्टतः सिद्ध किया है, जिससे इसे सामान्य चिकित्सा पद्धतियों का एक प्रमुख विकल्प बना दिया गया है।
आयुर्वेद के पुनर्जागरण से संघर्ष करते समय, वैज्ञानिक समुदाय ने आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांतों को स्वीकार किया है और उन्हें आधुनिक विज्ञान के साथ मेल करने का प्रयास किया है।
प्राकृतिक चिकित्सा की मान्यता:
यह चिकित्सा पद्धति रोगों के निदान, उनके कारणों का खोज, और उनके निवारण के लिए प्राकृतिक उपायों को प्राथमिकता देती है।
वैज्ञानिक समुदाय ने आयुर्वेद के रोग प्रतिरोधक क्षमता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और रोगों के निदान में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझा है।
आयुर्वेदिक पुनर्जागरण की प्राकृतिक चिकित्सा का मूल मंत्र है कि शरीर को स्वास्थ्य और संतुलन में रखने के लिए प्राकृतिक तत्वों का सही उपयोग किया जाए।
यह चिकित्सा प्रणाली शरीर में सामान्य संतुलन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करती है।
पुनर्जागरण की प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों, पौधों, और योग का प्रयोग किया जाता है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं।
पुनर्जागरण की प्राकृतिक चिकित्सा में संतुलित जीवनशैली, प्राणायाम, और ध्यान की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
व्यक्ति को इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार अपने आहार, व्यायाम, और व्यवहार में परिवर्तन करके अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की सलाह दी जाती है।
समृद्धि का प्रतीक:
आयुर्वेद के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा है।
सरकारों द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सा को समर्थन और प्रोत्साहन मिल रहा है।
जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों के प्रति लोगों की रुचि में वृद्धि हुई है।
आयुर्वेद के विभिन्न आसनों, प्राणायाम और ध्यान की महत्वपूर्णता को मान्यता मिली है।
समुदायों में आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार की गति बढ़ी है।
आयुर्वेद के प्रयोग से लोगों के स्वास्थ्य स्थिति में सुधार आया है।
आयुर्वेद के गुणों को विश्वभर में मान्यता मिलने की दिशा में कदम बढ़ा है।
आधुनिक प्रणालियों का सम्मिलन:
आधुनिक युग में आयुर्वेद का पुनर्जागरण एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। आज के दौर में, आयुर्वेद के पुनर्जागरण के साथ-साथ नई और आधुनिक प्रणालियों का सम्मिलन हो रहा है जो संसाधनों, प्रौद्योगिकियों और विज्ञान के आधार पर आयुर्वेदिक चिकित्सा को और भी प्रभावी बना रहा है।
आयुर्वेद के लक्षण, रोग, और उनके उपचार को वैज्ञानिक तथ्यों और शोध के साथ संदर्भित किया जा रहा है। आधुनिक चिकित्सा उपकरणों, जैसे कि जीनोमिक्स, उत्पादन प्रक्रियाएं, तथा बायो-मार्कर्स, का उपयोग करके, आयुर्वेदिक उपचारों की प्रभावकारिता को बढ़ाया जा रहा है।
आयुर्वेद के प्रयोग में डिजिटलीकरण का भी बड़ा योगदान है। आज के समय में, अनलाइन प्लेटफॉर्म्स, मोबाइल एप्लिकेशन्स, और वेबसाइट्स के माध्यम से, आयुर्वेद की जानकारी, उपचार तथा संबंधित उत्पादों तक पहुंच बढ़ाई जा रही है। यह उपचार की सुविधा, ज्ञान का साझा करना और रोगी के साथ संपर्क को अधिक सहज बनाता है।
आयुर्वेद के पुनर्जागरण में यह सभी तत्व - वैज्ञानिक शोध, तकनीकी उन्नति, और डिजिटलीकरण - साथ मिलकर, आयुर्वेद को एक नई दिशा में ले जा रहे हैं, जिसमें यह समृद्धि, उपचार की प्रभावता, और सामुदायिक संप्रेषण के साथ-साथ समर्थन और संरक्षण की एक उन्नत स्तर पर प्रस्तुति करता है।
स��मुदायिक सहयोग:
सामुदायिक संगठनों की सहायता से आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों का संचालन किया जा सकता है, जिससे लोगों को सस्ते और प्रभावी चिकित्सा सेवाएं प्राप्त हो सकें।
अनेक संगठन और समुदाय आयुर्वेद कैम्प्स, व्यायाम ग्रुप्स, और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं।
समुदाय के सहयोग से औषधियों की उत्पादन में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को सहायता मिलती है, जो कि लोगों के लिए सस्ते और प्राकृतिक उपचार उपलब्ध कराते हैं।
सामुदायिक सहयोग आयुर्वेदिक अनुसंधान और उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिससे नई औषधियों और उपायों का विकास हो सकता है।
सामुदायिक संगठनों के माध्यम से रोगनिरोधक उपायों की जानकारी और प्रचार-प्रसार होता है, जो लोगों को स्वस्थ जीवनशैली के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष
आयुर्वेद का पुनर्जागरण एक संवैधानिक प्रक्रिया है जो हमें प्राकृतिक जीवनशैली की ओर दिशा प्रदान कर रहा है। इससे न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का समर्थन हो रहा है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को भी सुधारा जा रहा है। आयुर्वेद का पुनर्जागरण हमारे जीवन को संतुलित, समृद्ध और स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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tejas-patel10-blog · 9 months ago
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तुला राशि और वृषभ राशि और कुम्भ राशि और मकर राशि के लोगों को एक बात कहना चाहता हूं और अन्य राशियों के लोगों से एक बात कहना चाहता हूं कि मैंने 2000 से आज तक यानी 2024 तक देश और विश्व समुदाय के कल्याण और धर्म के लिए मैंने लाईव टीवी broadcasting और डीटीएच और सीधे प्रसारण के द्वारा मैंने इतने कार्य किए है कि मेरे पुत्र पुत्री और मेरी माँ और मेरे गौ माता परिवार को 5 स्टार सुविधाए देश और विश्व समुदाय दे टी भी कम है क्योंकि मैं गणेश हू और गणेश कहने पर पिछे क्या बचता है मैंने लाईव टीवी ब्रॉडकास्टिंग के द्वारा और टीवी और डीटीएच के द्वारा सीधे प्रसारण के द्वारा मेरी आत्मा और मन की भक्ति और शक्ति के द्वारा असीमित कार्य किए है विश्व समुदाय और देश के धर्म और धर्म के प्रसार के लिए भी असीमित कार्य किए है लेकिन आज मेरे भाई शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर है मेरी माँ शरीर से मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर है मैं खुद शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गया हू मेरा गौ माता परिवार शरीर से कमजोर हो गया है मैंने लाईव टीवी ब्रॉडकास्टिंग के द्वारा और लाईव टीवी डीटीएच के द्वारा सीधे प्रसारण के द्वारा देश और विश्व समुदाय के लिए असंख्य कार्य किए है क्योंकि मैं गणेश हू और गणेश कहने पर पिछे क्या बचता है लेकिन देश के लोगों और विश्व समुदाय को मेरे और मेरे गौ माता परिवार और मेरे परिवार के लोगों की कोई सुध बुद्ध नहीं लेते है हमारा पूरा परिवार मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गया है मैंने लाईव टीवी broadcasting के द्वारा और टीवी डीटीएच के द्वारा सीधे प्रसारण के द्वारा मीडिया राजनीति धर्म खेलों में सभी क्षेत्रों में कार्य किए है मेरे अलौकिक और भक्ति के कार्यो का मेरे परिवार के लोगों को कोई पता ही नहीं है वे अनभिज्ञ है मेरे कार्यो से लेकिन जिन लोगों ने मेरे कार्यो से फायदा उठाया है देश के लोगों और विश्व समुदाय के लोगों उनको तो मेरे परिवार को 5 स्टार सुविधाए देनी चाहिए क्योंकि मैं गणेश हू मेरी लौकिक माँ कमजोर हो गयी है मेरे लौकिक पिताजी 17 मार्च 2021 को देवलोक हो गए थे हमारे परिवार की कोई सुध बुद्ध लेने वाले लोग नहीं है हम सब शरीर से कमजोर हो गए है राहु केतु शुक्र शनि और बुद्ध के जातकों के द्वारा क्योंकि ये लोग सब दुख देने वाले लोग है ।।।।। mere
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airnews-arngbad · 9 months ago
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आकाशवाणी छत्रपती संभाजीनगर
संक्षिप्त बातमीपत्र
१३ फेब्रुवारी २०२४ सकाळी ११.०० वाजता
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जागतिक रेडिओ दिन आज साजरा होत आहे. नभोवाणी या माध्यमाबाबत नागरिकांमध्ये जागृती निर्माण करण्यासाठी २०१२ पासून हा दिवस साजरा केला जातो. ज्ञान, माहिती आणि मनोरंजन देणारं शतक, अशी यंदाच्या रेडियो दिनाची संकल्पना आहे.
देशाच्या कानाकोपर्यात पोहोचलेलं आकाशवाणी हे अद्वितीय आणि सशक्त माध्यम आहे, अनेक प्रसार माध्यमांच्या सध्याच्या युगातही आकाशवाणीच्या कार्यक्रमांचं आणि बातम्यांचं महत्व आजही अबाधित आहे, असं आकाशवाणीच्या प्रधान महासंचालक वसुधा गुप्ता यांनी म्हटलं आहे. रेडिओ दिनानिमित्त आकाशवाणीवरुन दिलेल्या संदेशात त्या आज बोलत होत्या. 
यानिमित्त माहिती आणि प्रसारण मंत्रालयानं चेन्नईच्या अण्णा विद्यापीठात दोन दिवसीय प्रादेशिक समुदाय रेडिओ संमेलनाचं आयोजन करण्यात आलं आहे.
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गेल्या महिन्यात, किरकोळ चलन फुगवट्याचा दर पाच पूर्णांक एक दशांश टक्के राहिला. तीन महिन्यातला हा सर्वात कमी दर असून, खाद्यान्नाचे दर कमी झाल्यामुळे ही घट झाल्याचं, केंद्रीय सांख्यिकी आणि कार्यक्रम अंमलबजावणी मंत्रालयानं सांगितलं आहे.
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राज्यातल्या जनतेला उत्तम प्रकारच्या आरोग्य सोयी सुविधा देण्यासाठी शासन कटिबद्ध असून, प्रत्येक जिल्हा सामान्य रुग्णालय हे सुपर स्पेशालिटी रुग्णालय बनवणार असल्याचं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांनी म्हटलं आहे. ठाणे जिल्ह्यात उल्हासनगर महानगरपालिका सुपर स्पेशलिटी रुग्णालयाचं लोकार्पण केल्यानंतर ते काल बोलत होते.
दरम्यान, चर्मकार समाजबांधवांच्या विविध मागण्यांसंदर्भात काल मुंबईत मुख्यमंत्र्यांच्या उपस्थितीत बैठक झाली. शासनाने गटई कामगारांना व्यवसायासाठी दिलेल्या स्टॉल्सची तोडफोड थांबवून त्यांचं योग्य ठिकाणी पुनर्वसन करण्याच्या सूचना मुख्यमंत्रयांनी यावेळी दिल्या.
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पालघर आणि रायगड जिल्ह्यातल्या १७ कातकरी कुटुंबांना, सावकारांच्या जाचातून सोडवलेली जमिनीची मालकी काल परत मिळाली. उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांच्या हस्ते काल मुंबईत या कुटुंबांना जागांचे सातबारा उतारे देण्यात आले. अत्यंत थोडक्या पैशात किंवा काहीतरी वस्तू देऊन सावकारांनी बळकावलेल्या या जमिनी सोडवण्यासाठी फडणवीस यांनी २०१९ मध्ये एका समितीची स्थापना केली होती.
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gitaacharaninhindi · 10 months ago
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8. व्यक्त और अव्यक्त को समझना
पतवार से जुड़े एक छोटे से यंत्र ‘ट्रिम टैब’ में एक हल्का सा बदलाव एक बड़े जहाज की दिशा को बदल देता है। इसी तरह, गीता का अध्ययन करने के लिए एक हल्का सा ��्रयास हमारे जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। महामारी की वजह से उपलब्ध समय गीता के अध्ययन के लिये किया जा सकता है जिससे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आएगा।
गीता किंडरगार्टन से लेकर स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएशन) तक आंतरिक बोध के लिए एक शाश्वत पाठ्य पुस्तक है और संभावना है कि पहली बार पढऩे पर इसकी बहुत कम अवधारणाएँ समझ में आएंगी। यदि हम अव्यक्त और व्यक्त की दृष्टिकोण से अवलोकन करें तो उन्हें आसानी से समझा जा सकता है। अव्यक्त वह है जो हमारी इन्द्रियों से परे है और व्यक्त वह है जो इन्द्रियों के दायरे में है।
व्यक्त होने की कहानी बिग बैंग से लेकर सितारों के निर्माण तक, इन सितारों के अंतर्भाग में उच्च रासायनिक तत्वों के परमाणुओं का विलय, सितारों के विस्फोट में इन तत्वों के प्रसार, ग्रह प्रणालियों के गठन और बुद्धिमान जीवन की उपस्थिति में शामिल है। यह वैज्ञानिक समुदाय द्वारा एक स्वीकृत तथ्य है कि इन व्यक्त जीवन रूपों, ग्रहों, सितारों और यहां तक कि ब्रह्माण्ड के अस्तित्व की एक निश्चित समय सीमा है। हालांकि इस अनुमानित समय सीमा के पैमाने भिन्न हो सकते हैं।
हमारी यह समझ कि हम जन्म से मृत्यु तक मौजूद हैं, व्यक्त के दृष्टिकोण से सही है। गीता के अनुसार, अव्यक्त दृष्टिकोण से हम जन्म से पहले मौजूद थे और मृत्यु के बाद भी मौजूद रहेंगे। इस बोध के साथ, हम उनके बीच के संबंध को आसानी से समझ सकते हैं और यह समझ हमें अव्यक्त को साकार करने के लक्ष्य को प्राप्त करा सकता है जिसे मोक्ष के नाम से जाना जाता है।
इस लक्ष्य की प्राप्ति में अहंकार एक प्रतिबन्धक है। बाहर के सुख या दु:ख की परवाह किये बिना, जितनी मात्रा में आनंद से हम भर जाते हैं, अव्यक्त तक पहुंचने के लिए तय की गई दूरी का यह एक संकेतक है।
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abhinews1 · 11 months ago
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कृषि विभाग ने अनंतनाग में किसान जागरूकता शिविर का आयोजन किया
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कृषि विभाग ने अनंतनाग में किसान जागरूकता शिविर का आयोजन किया
माननीय उपराज्यपाल द्वारा परिकल्पित एचएडीपी यूटी के कृषि क्षेत्र के लिए गेम चेंजर के रूप में उभर रहा है: एस.एफ. हामिद अनंतनाग 10 दिसंबर: कृषि जागरूकता बढ़ाने और स्थानीय किसान समुदाय को सशक्त बनाने के प्रयास में कृषि विभाग ने आज सुभानपोरा, अनंतनाग में किसान जागरूकता शिविर का आयोजन किया। डिप्टी कमिश्नर (डीसी) अनंतनाग एसएफ हामिद और निदेशक कृषि कश्मी�� ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करना, आधुनिक कृषि पद्धतियों पर जानकारी का प्रसार करना और किसानों के लिए एक सहयोगी मंच को बढ़ावा देना है। बड़ी संख्या में स्थानीय किसानों ने भाग लिया और विभिन्न परियोजनाओं में एचएडीपी के तहत कई प्रगतिशील किसानों के बीच स्वीकृति पत्र भी वितरित किए गए। मौके पर उपायुक्त ने कहा कि समग्र कृषि विकास कार्यक्रम (एचएडीपी) के तहत क्षेत्र में सब्जी क्षेत्र के प्रचार-प्रसार एवं विकास के लिए कृषि विभाग द्वारा बहुआयामी परियोजना क्रियान्वित की जा रही है. उन्होंने कहा कि सब्जी क्षेत्र में राजस्व और रोजगार सृजन की काफी संभावनाएं हैं। डीसी ने युवा किसानों, कृषि उद्यमियों को एचएडीपी के तहत विभिन्न परियोजनाओं का लाभ उठाने और कृषि अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि युवा शिक्षित किसान अच्छा काम कर रहे हैं और यह प्रवृत्ति वास्तव में उत्साहजनक है। निदेशक कृषि कश्मीर ने बोलते हुए आह्वान किया कि विकासात्मक कार्यक्रमों विशेषकर एचएडीपी के कार्यान्वयन से अनंतनाग जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में बदलाव आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि अनंतनाग की रणनीतिक जलवायु और जैवसंसाधन विविधता का दोहन किया जा सकता है नीति समर्थन प्रणाली को सक्षम करना जो प्रौद्योगिकी, ज्ञान के उपयोग पर केंद्रित है और द्वितीयक कृषि, मूल्य को बढ़ावा देने के माध्यम से पूंजी निवेश जोड़ और प्रसंस्करण, विविधीकरण, बाजार संपर्क, क्षमता निर्माण कृषि प्रणालियों का लचीलापन। मुख्य कृषि अधिकारी अनंतनाग स्थानीय कृषक समुदाय को उनकी उत्साहपूर्ण भागीदारी और सहभागिता के लिए आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग टिकाऊ और समृद्ध कृषि भविष्य के लिए आवश्यक ज्ञान और उपकरणों के साथ किसानों को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
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jharexpress · 1 year ago
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झारखंड शिक्षक के ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) चोरी ?
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झारखंड (jharkhand) के शिक्षक (jharkhand teacher) डॉ सपन कुमार (sapan kumar) का नाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुका है। उनके द्वारा विकसित ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) की चोरी की गई है, जब बंगाल के एक शिक्षक ने इस मॉडल का नकल करके वर्की फाउंडेशन के द्वारा आयोजित ग्लोबल टीचर प्राइज के लिए नामांकन किया है। डॉ सपन कुमार ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस मामले से अवगत कराया और मुख्यमंत्री ने संबंधित विभाग को इस मामले में कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
झारखंड के शिक्षक डॉ सपन कुमार (sapan kumar) के ब्लैक बोर्ड मॉडल की चोरी
झारखंड के प्रमुख शिक्षक (jharkhand teacher), डॉ सपन कुमार (sapan kumar), ने अपने ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) के चोरी हो जाने के मामले के साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर सुचना दिया। यह मामला बंगाल के एक शिक्षक द्वारा उनके ब्लैक बोर्ड मॉडल की नकल करके वर्की फाउंडेशन की ओर से आयोजित ग्लोबल टीचर प्राइज के लिए नामांकन किये जाने के बाद उठा है।
डॉ सपन कुमार (sapan kumar) और ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model)
jharkhand teacher डॉ सपन कुमार ने 2020 में कोरोना काल में अपने गांव में बच्चों को पढ़ाने के लिए अनोखे तरीके से मिट्टी के दीवारों पर ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) बनाया था। इस मॉडल को यूनेस्को और वर्की फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किए जाने वाले ग्लोबल टीचर प्राइज के लिए नामांकित किया गया था। यह पुरस्कार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिया जाता है और इसका इनाम एक मिलियन डॉलर है।
चोरी का मामला
बंगाल के एक शिक्षक ने डॉ सपन कुमार के ब्लैक बोर्ड मॉडल को नकल करके वर्की फाउंडेशन के ग्लोबल टीचर प्राइज के लिए अपना नामांकन किया है। डॉ सपन कुमार ने इस मामले को उठाया और मुख्यमंत्री से मिलकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
प्रमुखमंत्री की कार्रवाई
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस संबंध में संबंधित विभाग के पदाधिकारियों को मामले की जांच और कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
झारखंड के ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) का महत्व
डॉ सपन कुमार ने 2020 में कोरोना काल में झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में अपने ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) की शुरुआत की थी। इस मॉडल की मदद से उन्होंने अपने गांव के बच्चों को पढ़ाने का काम क��या और विद्या का प्रसार किया।
डॉ सपन कुमार (sapan kumar) का आपत्ति
डॉ सपन कुमार ने इस मामले में अपनी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि उनके द्वारा शुरुआत की गई इस मॉडल का अनुकरण बंगाल के शिक्षक द्वारा किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके मॉडल को ज्यादा प्रमुखता दी जानी चाहिए क्योंकि वर्की फाउंडेशन द्वारा ग्लोबल टीचर प्राइज के लिए उनका नामांकन पहले हुआ था।
आदिवासी समुदाय की प्रतिक्रिया
आदिवासी समुदाय के लोगों और विद्यालय के विद्यार्थियों ने भी इस संबंध में आपत्ति दर्ज कराते हुए चोरी करने वाले शिक्षक पर कार्रवाई करने की मांग की है।
निष्कर्ष
इस मामले में डॉ सपन कुमार (sapan kumar) की मेहनत और उनके ब्लैक बोर्ड मॉडल (black board model) की महत्वपूर्ण भूमिका है, और यह मामला उनके और उनके गांव के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। यह मामला सोशल मीडिया पर भी चर्चा में है और इसके निष्कर्ष का इंतजार है।
ये भी पढ़ें: jharkhand rojgar mela: हेमंत सोरेन द्वारा 5132 युवक को नौकरी
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mmulnivasi · 2 years ago
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🎁 #बधाई_बधाई_बधाई* 👍 *RAEPराष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद, मध्यप्रदेश की नई प्रदेश कार्यकारिणी का अनुमोदन केन्द्रीय सचिवालय, पुणे से मिलने पर प्रदेश कार्यकारिणी के समस्त पदाधिकारियो को बहुत बहुत बधाई* 👍 *समस्त पदाधिकारियो को बामसेफ सचिवालय के द्वारा दिये गए निर्देशो का पालन करते हुए संगठन के द्वारा निर्धारित किये गए कार्यों को एवम उद्देश्य और विचारधारा का प्रचार प्रसार करके आदिवासी समाज मे राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद को मजबूत बनाने के लिए मिलजुलकर प्रदेश मे काम करना होगा, ताकि ब्राह्मणो के द्वारा आदिवासी समुदाय का इस्तेमाल न हो|* https://www.instagram.com/p/Co4mAN8sgL1/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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newsuniversal-in · 2 years ago
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जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कैंप का हुआ शुभारम्भ
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गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कैंप का लेफ्टिनेंट जनरल रविंद्र प्रताप साही उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण लखनऊ ने रविवार को शुभारम्भ किया गया। - प्रदेश ��ें आयोजित होने वाले बड़े कार्यक्रमों की बनानी होगी आपदा प्रबंधन योजना- उपाध्यक्ष गोरक्षनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर्व पर आयोजित हो रहे खिचड़ी मेला के अवसर पर मंदिर परिसर में भीम सरोवर के समीप जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण गोरखपुर ने कैंप स्थापित किया गया है। उक्त अवसर पर उपाध्यक्ष ने कहा कि खिचड़ी मेला में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की सुरक्षा के दृष्टिगत एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, 26 वी वाहिनी पीएससी की जल पुलिस, नागरिक सुरक्षा तथा आपदा विभाग के आपका मित्र/सखी एवं स्वयंसेवकों की तैनाती की गई है। स्थापित कैंप के माध्यम से जन समुदाय के मध्य घटित होने वाली आपदाओं जैसे बाढ़, अग्निकांड, वज्रपात, सर्पदंश, भूकंप, शीत लहर, नाव ���ुर्घटना आदि के दौरान "क्या करें, क्या ना करें" विषय पर हैंड बिल वितरण व वीडियो फिल्म/लघु वृत्तचित्र के माध्यम से जागरूक किया जाएगा। उक्त अवसर पर उपाध्यक्ष ने आपदा मित्र/सखी पर आधारित लघु वृत्त चित्र का अनावरण किया और आपदा मित्र व सखी से अपील किया कि सोशल मीडिया के माध्यम से जन समुदाय के मध्य आपदा न्यूनीकरण से संबंधित सूचनाओं का व्यापक प्रचार प्रसार करें। आपदा प्राधिकरण द्वारा स्थापित किए गए कैंप की प्रशंसा करते हुए उपस्थित से अपेक्षा व्यक्ति की सभी साथ में मिलकर आने वाले श्रद्धालुओं को सुरक्षित और सौहार्दपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराएं और आपदाओं के न्यूनीकरण के प्रति जागरूक करें। उक्त अवसर पर  राजेश कुमार सिंह अपर जिलाधिकारी वित्त राजस्व/प्रभारी अधिकारी आपदा आपदा विशेषज्ञ एवं एनडीआरएफ,एसडीआरएफ, पीएससी, नागरिक सुरक्षा आदि विभाग के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। Read the full article
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telnews-in · 2 years ago
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युवा लोगों में एड्स प्रसार दर के बारे में जागरूकता
युवा लोगों में एड्स प्रसार दर के बारे में जागरूकता
नेशनल एलायंस फॉर हेल्थ (एएनसीएस) की बारहवीं महासभा का आयोजन नेशनल काउंसिल टू फाइट एड्स (सीएनआईएस) के कार्यकारी सचिव की उपस्थिति में हुआ। बैठक की अध्यक्षता डॉ. Safiétou Thiam एड्स और अन्य बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में समुदाय के कलाकारों द्वारा किए जा रहे कार्य से खुश हैं। हालाँकि, उन्होंने 19 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं में नए संक्रमणों के बढ़ने की ओर ध्यान आकर्षित किया और उनसे जागरूकता बढ़ाने का…
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darshaknews · 3 years ago
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भारतातील ओमिक्रॉन व्हेरियंटच्या कम्युनिटी ट्रान्समिशनचे कारण जाणून घ्या
भारतातील ओमिक्रॉन व्हेरियंटच्या कम्युनिटी ट्रान्समिशनचे कारण जाणून घ्या
नवी दिल्ली: देशात Omicron रूपे (ओमिक्रॉन प्रकार) समुदाय प्रसार (समुदाय प्रसारण) महानगरांमध्ये कोविड-19 ची पातळी गाठली आहे (कोविड 19) प्रकरणांमध्ये वाढ झाली आहे, जिथे हा प्रकार प्रबळ झाला आहे. भारतीय SARS-CoV-2 Genomic Consortium ने आपल्या नवीनतम बुलेटिनमध्ये हे सांगितले आहे. INSACOG नुसार, Omicron चे BA.2 उप-प्रकार देशात अनेक ठिकाणी आढळले आहे. आश्चर्याची गोष्ट म्हणजे, देशात 2 डिसेंबर रोजी…
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letshnnews · 4 years ago
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भारत में COVID-19 का सामुदायिक प्रसार शुरू हो गया है, ग्रामीण क्षेत्रों में मामले खराब संकेत हैं: IMA छवि स्रोत: पीटीआई फ़ाइल भारत में COVID-19 का सामुदायिक प्रसार शुरू हो गया है, ग्रामीण क्षेत्रों में मामले खराब संकेत हैं: IMA…
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bakaity-poetry · 5 years ago
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नए साल पर जलते-बंटते मुल्क में मीडिया-रुदन / अभिषेक श्रीवास्तव
पिछले ही हफ्ते ओलिंपिक खेलों में प्रवेश के लिए मुक्केबाज़ी का ट्रायल हुआ था. मशहूर मुक्केबाज़ मेरी कॉम ने निख़त ज़रीन नाम की युवा मुक्केबाज़ को हरा दिया. इस घटना से पहले और बाद में क्या-क्या हुआ, वह दूर की बात है. मुक्केबाज़ी के इस मैच और उसके नतीजे की ख़बर ही अपने आप में जिस रूप में सामने आयी, वह मुझे काम की लगी. किसी ने ट्विटर पर किसी प्रकाशन में छपी ख़बर की हेडिंग का स्क्रीनशॉट लगाकर उस पर सवाल उठाया था. हेडिंग में लिखा थाः “इंडियाज़ मेरी कॉम बीट्स निखत...” ट्विटर यूज़र ने मेरी कॉम के नाम से पहले “इंडिया” लगाने पर आपत्ति जतायी थी और पूछा था कि इसके पीछे की मंशा क्या है.
विचार में लिपटी घटना
इधर बीच लंबे समय से एसा हो रहा है कि पहली बार जब कोई घटना नज़र के सामने आ रही है, चाहे किसी भी प्लेटफॉर्म पर, तो वह विशुद्ध घटना की तरह नहीं आ रही, एक ओपिनियन यानी टिप्पणी/राय के रूप में आ रही है. वास्तव में, मूल घटना ओपिनियन के साथ नत्थी मिलती है और ओपिनियन असल में एक पक्ष होता है, घटना के समर्थन में या विरोध में. ऐसे में मूल घटना को जानने के लिए काफी पीछे जाना पड़ता है. अगर आप दैनंदिन की घटनाओं से रीयल टाइम में अपडेट नहीं हैं, तो बहुत मुमकिन है कि सबसे पहले सूचना के रूप में उक्त घटना आपके पास न पहुंचे बल्कि आपके पास पहुंचने तक उक्त घटना पर समाज में खिंच चुके पालों के हिसाब से एक धारणा, एक ओपिनियन पहुंचे. जो धारणा/राय/नज़रिया/ओपिनियन आप तक पहुंचेगी, वह ज़ाहिर है आपकी सामाजिक अवस्थिति पर निर्भर करेगा.
मुक्केबाज़ी ��ाली ख़बर लिखते वक्त जिसने मेरी कॉम के नाम के आगे “इंडियाज़” लगाया होगा, उसके दिमाग में एक विभाजन काम कर रहा होगा. जिसने इसे पढ़ा और टिप्पणी की, उसके दिमाग में भी एक विभाजन काम कर रहा था, कि वह बाल की खाल को पकड़ सका. गौर से देखें तो हम आपस में रोजमर्रा जो बातचीत करते हैं, संवाद करते हैं, वाक्य बोलते हैं, लिखते हैं, सोचते हैं, सब कुछ सतह पर या सतह के नीचे विभाजनों के खांचे में ही शक्ल लेता है. हम अपने विभाजनों को सहज पकड़ नहीं पाते. दूसरे के विभाजन हमें साफ़ दिखते हैं. यह इस पर निर्भर करता है कि हमारा संदर्भ क्या है, सामाजिक स्थिति क्या है.
मसलन, आप शहर में हैं या गांव/कस्बे में, इससे आप तक पहुंचने वाली राय तय होगी. आप किस माध्यम से सूचना का उपभोग करते हैं, वह आप तक पहुंचने वाली राय को उतना तय नहीं करेगा बल्कि किन्हीं भी माध्यमों में आप कैसे समूहों से जुड़े हैं, यह आपकी खुराक़ को तय करेगा. आपकी पढ़ाई-लिखाई के स्तर से इसका खास लेना−देना नहीं है, हां आपकी जागरूकता और संपन्नता बेशक यह तय करेगी कि आपके पास जो सूचना विचारों में लिपट कर आ रही है उसे आप कैसे ग्रहण करते हैं.
नए-पुराने सामाजिक पाले
मोटे तौर पर अगर हमें अपने समाज के भीतर रेडीमेड पाले देखने हों, जो सूचना की प्राप्ति को प्रभावित करते हैं तो इन्हें गिनवाना बहुत मुश्किल नहीः
− सामाजिक तबका (उच्च तबका बनाम कामगार)
− जाति (उच्च बनाम निम्न)
− लैंगिकता (पुरुष वर्चस्व बनाम समान अधिकार)
− धर्म (हिंदू बनाम मुसलमान/अन्य)
− भाषा (हिंदी बनाम अन्य, अंग्रेज़ी के साथ)
− क्षेत्र (राज्य बनाम राज्य) 
ये सब पुराने विभाजन हैं. हमारे समाज में बरसों से कायम हैं. अंग्रेज़ी जानने वाले शहरी लोगों के जेहन में कुछ नए विभाजन भी काम करते हैं, मसलन विचार के इलाके में वाम बनाम दक्षिण, धार्मिकता के क्षेत्र में सेकुलर बनाम साम्प्रदायिक, आधुनिक बनाम पिछड़ा, इत्यादि. ज्यादा पढ़ा लिखा आदमी ज्यादा महीन खाता है, तो वह कहीं ज्यादा बारीक विभाजक कोटियां खोजेगा. ठीक वैसे ही जैसे आंख का डॉक्टर अगर और आधुनिक शिक्षा लेना चाहे, तो वह एक ही आंख का विशेषज्ञ बन सकेगा, दाईं या बाईं. आजकल तो चलने वाले, दौड़ने वाले, जॉग करने वाले, खेलने वाले और ट्रेकिंग करने वाले जूते भी अलग-अलग आते हैं. तर्ज़ ये कि चीज़ें जितना बढ़ती हैं, उतना ही बंटती जाती हैं.
��मस्या तब पैदा होती है जब हम चीज़ों को केवल दो खांचे में बांट कर देखना शुरू करते हैं. या तो ये या फिर वो. दिस ऑर दैट. हम या वे. इसे संक्षिप्त में बाइनरी कहते हैं, मने आपके पास दो ही विकल्प हैं− हां कहिए या नहीं. जैसे आप टीवी स्टूडियो में अर्णब गोस्वामी के सामने बैठे हों और आपसे कहा जा रहा हो कि देश आज रात जानना चाहता है कि आप फलाने के साथ हैं या खिलाफ़. आपके पास तीसरा रास्ता नहीं है. बीच की ज़मीन छिन चुकी है.
तटस्थता के आपराधीकरण के नाम पर इस बाइनरी को पुष्ट करने का काम बहुत पहले से चला आ रहा है. आज, अपने देश में संचार और संवाद के इलाके में जब समूचा विमर्श ही गोदी बनाम अगोदी, भक्त बनाम द्रोही की दुई में तौला जा रहा है तो जिंदगी का कोई भी पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है. यह समझ पाना उतना मुश्किल नहीं है कि इस विभाजन को सबसे पहले पैदा किसने किया- राजनीति ने, मीडिया ने या समाज ने. हम जानते हैं कि हमारे समाज में विभाजनकारी कोटियां पहले से थीं, इन्हें बस पर्याप्त हवा दी गयी है. समझने वाली बात ये है कि यह विभाजन अब ध्रुवीकरण की जिस सीमा तक पहुंच चुका है, वहां से आगे की तस्वीर क्या होनी है.
ध्रुवीकरण के अपराधी?
मनु जोसेफ ने बीते लोकसभा चुनावों के बीच द मिन्ट में एक पीस लिखकर समझाने की कोशिश की थी कि ध्रुवीकरण (पोलराइज़ेशन) उतनी बुरी चीज़ नहीं है. इस पीस को स्वराज मैगज़ीन के संपादक आर. जगन्नाथन ने बड़े उत्साह से ट्वीट करते हुए कहा था, “मनु का हर लेख शाश्वत मूल्य वाला है.” लेख को समझने के लिए बहुत नीचे जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती यदि इस ट्वीटर के थ्रेड को आप देखें. मधुमिता मजूमदार प्रतिक्रिया में लिखती हैं, “मनु यह मानकर लिखते हैं कि वे हर मुद्दे पर सही हैं. ध्रुवीकरण पर यह लेख अतिसरलीकृत है. और जग्गी को इसमें मूल्य दिख रहा है, यही अपने आप में मेरे बिंदु की पुष्टि करता है.”
ध्रुवीकरण बुरा नहीं है, मनु जोसेफ ने यह लिखकर अपने पाठकों में ध्रुवीकरण पैदा कर दिया. इनकी दलीलों पर बेशक बात हो सकती है, लेकिन समूचे लेख में हमारे तात्कालिक काम का एक वाक्य है जिसे मैं बेशक उद्धृत करना चाहूंगा. मनु लिखते है- “राजनीति हमें यह सबक स��खलाती है कि व्यवस्था में जब कोई ध्रुवीकरण नहीं होता, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सत्य जीत गया है, इसका ��तलब बस इतना होता है कि एक वर्ग की जीत हुई है.”
सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण के संदर्भ में भारतीय मीडिया की भावी भूमिका पर आने के लिए इसे थोड़ा समझना ज़रूरी है. 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए. बीस फीसद मुसलमानों की आबादी वाले इस राज्य में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित जनादेश मिला, बावजूद इसके कि उसने एक भी मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. जब बहस मुख्यमंत्री के चेहरे पर आयी, तो योगी आदित्यनाथ के नाम पर दो खेमे बन गए. काफी खींचतान के बाद मुख्यमंत्री योगी ही बने, जिसके परिणाम आज हम साफ़ देख पा रहे हैं. इसी बीच बहस में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने इंडिया टुडे से बातचीत में योगी की (कम्यूनल) भाषा का बचाव करते हुए एक बात कही थी-
"अस्सी के दशक से जमीनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों से ऐसे लोगों का उभार हुआ जो अतीत के उन अंग्रेजी शिक्षित राजनेताओं की अभिजात्य व सूक्ष्म शैली से मेल नहीं खाते थे जिन्हें वास्तविकता से ज्यादा अपनी छवि की चिंता हुआ करती थी. नए दौर के नेता समुदाय से निकले विमर्श को आगे बढ़ाते हैं इसलिए उनकी भाषा को प्रत्यक्षतः नहीं लिया जाना चाहिए. इसे समझे बगैर आप न योगी को समझ पाएंगे, न लालू (प्रसाद यादव) को और न ही ममता (बनर्जी) को."
राकेश सिन्हा और मनु जोसेफ क्या एक ही बात कह रहे हैं? मनु ध्रुवीकरण की गैर−मौजूदगी वाली स्थिति में जिस वर्ग की जीत बता रहे हैं, क्या यह वही वर्ग है जो राकेश सिन्हा के यहां अंग्रेजी शिक्षित राजनेताओं के रूप में आता है, जिसे वास्तविकता से ज्यादा अपनी छवि की चिंता हुआ करती थी?
उसी लेख से मनु जोसेफ का एक शुरुआती वाक्य देखे-
“वास्तव में, यह तथ्य कि एक समाज ध्रुवीकृत है, इस बात का संकेत है कि एक वर्ग के लोगों का मुख्यधारा के विमर्शों पर एकाधिकार नहीं रह गया है. ध्रुवीकरण को बदनाम करने का काम वे लोग करते हैं जिनका विचारों के प्रसार से नियंत्रण खत्म हो चुका है.”
राकेश सिन्हा “समुदाय से निकले विमर्श को आगे” बढाने वाले जिन “नए दौर के नेताओं” का ज़िक्र कर रहे हैं, मनु जोसेफ के मुताबिक क्या इन्होंने ही “मुख्यधारा के विमर्शों पर एकाधिकार” को तोड़ने का काम किया है? इस तराजू में ममता बनर्जी, योगी और लालू प्रसाद यादव को यदि एक साथ सिन्हा की तरह हम तौल दें तो फिर साम्प्रदायिकता के मसले पर ठीक उलटे ध्रुव पर खड़े लालू प्रसाद यादव और योगी को कैसे अलगाएंगे? फिर तो हमें काफी पीछे जाकर नए सिरे से यह तय करना होगा कि ध्रुवीकरण की शुरुआत लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से हुई थी या लालू प्रसाद यादव द्वारा उसे रोके जाने के कृत्य से? 
फिर तो हमें आशुतोष वार्ष्णेय की इस थियरी पर भी ध्यान देना होगा कि अर्थव्यवस्था को निजीकरण और उदारीकरण के लिए खोले जाने पर नरसिंहराव के दौर में संसद में चली शुरुआती बहसों में भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियों का पक्ष एक था और कांग्रेस अल्पमत में थी, इसके बावजूद कम्युनिस्ट पार्टियों ने साम्प्रदायिकता के मुद्दे को आर्थिक मुद्दे पर तरजीह देते हुए मनमोहन सिंह के प्रोजेक्ट को चुपचाप हामी दे दी. यह तो बहुत बाद में जाकर लोगों ने समझा कि उदारवाद और साम्प्रदायिकता एक ही झोले में साथ आए थे, वामपंथियों को ही साम्प्रदायिकता का मोतियाबिंद हुआ पड़ा था.
फिर क्या बुरा है कि सईद नकवी की पुस्तक (बींग दि अदर) को ही प्रस्थान बिंदु मानकर कांग्रेस को ध्रुवीकरण का शुरुआती अपराधी मान लिया जाए? (आखिर वे भी तो इतना मानते ही हैं कि भारत को दो ऐसी अतियों में तब्दील कर दिया गया है जो परस्पर द्वंद्व में हैं!) और इसके बरअक्स भारतीय जनता पार्टी सहित तमाम क्षेत्रीय दलों, उनसे जुड़े हित समूहों, जाति समूहों, समुदायों, पिछड़ी चेतनाओं और “समुदायों से निकले विमर्श को आगे बढ़ाने वाले नए दौर के नेताओं” (राकेश सिन्हा) को द्वंद्व का दूसरा सिरा मानते हुए इन्हें अपने अंतर्विरोधों के भरोसे छोड़ दिया जाए? ब्राह्मण पहले तय करे कि वह हिंदू है या ब्राह्मण. पिछड़ा, दलित और आदिवासी खुद तय करे कि उसे अपनी पहचान के साथ जीने में फायदा है या हिंदू पहचान के साथ. विभाजन के बाद भारत में रह गए मुसलमानों को चूंकि यह अहसास होने में बहुत वक्त नहीं लगा था कि यहां उनके साथ दोय�� दरजे का बरताव हो रहा है (नक़वी, बींग दि अदर), लिहाजा उन्हें तब तक कुछ नहीं तय करने की ज़रूरत है जब तक कि उन्हें जबरन हिंदू न बनाया जाए.
अब्दुल्ला दीवाने की चिंता
मीडिया इस समूचे रायते में दीवाने अब्दुल्ला की तरह होश खोया नज़र आता है. पत्रकारिता की बॉटमलाइन यह है कि मीडिया मालिकों को कुल मिलाकर अपनी दुकान बचाए रखने और मीडियाकर्मियों को अपना वेतन और नौकरी बचाए रखने की चिंता है. इसीलिए ध्रुवीकरण के अपराध का जो हिस्सा मीडिया और इसके कर्मियों के सिर आता है, मेरे खयाल में यह न केवल ध्रुवीकरण को समझने में आने वाली जटिलताओं से बचने के लिए किया जाने वाला सरलीकरण है बल्कि गलत लीक भी है जो हमें कहीं नहीं पहुंचाती.
यह सच है कि मीडिया बांटता है, इसके स्थापित चेहरे ��िभाजनकारी हैं, लेकिन ध्रुवीकरण अपनी पूरी जटिलता में सबसे आसान तरीके से मीडिया में ही पकड़ में आता है यह भी एक तथ्य है. जो दिखता है, वह साफ़ पकड़ा जाता है. जो नहीं दिखता, या कम दिखता है, वह ज़रूरी नहीं कि ज्यादा ख़तरनाक न हो. इंगलहार्ट और नोरिस ने 2016 के अपने एक शोध में बताया है कि वंचित तबकों के बीच बढ़ती आर्थिक असुरक्षा उनके भीतर जिस असंतोष को बढ़ाती है, उसी के चलते वे विभाजनकारी नेताओं के लोकरंजक मुहावरों में फंसते जाते हैं. मीडिया इसमें केवल मध्यस्थ का काम करता है.
एक ध्रुवीकृत समाज में मीडिया से कहीं ज्यादा यह प्रक्रिया आपसी संवादों संपर्कों से कारगर होती है. विभाजित समाज में एक व्यक्ति अपने जैसा सोचने वाला पार्टनर तलाश करता है. इससे उसके पहले से बने मूल्य और धारणाएं और मजबूत होती जाती हैं. पी. साईनाथ इस परिघटना को “पीएलयू” (पीपुल लाइक असद) का नाम देते हैं. इसी संदर्भ में एक शोध बताता है कि दूसरे खयालों के व्यक्तियों के साथ संवाद करने पर अपनी धारणा और दूसरे की धारणा के बीच दूरी और ज्यादा बन जाती है. यही वजह है कि ज़ी न्यूज़ देखने वाला दर्शक एनडीटीवी देखकर ज़ी न्यूज़ के प्रति और समर्पित हो जाता है और एनडीटीवी के दर्शक के साथ भी बिल्कुल यही होता है जब वह ज़ी न्यूज़ देखता है.
यह समस्या केवल मीडिया के दायरे में नहीं समझी जा सकती है. मीडिया का संकट अकेले मीडिया का नहीं, समाज और संस्कृति का संकट है बल्कि उससे कहीं ज्यादा इंसानी मनोविज्ञान का संकट है. इसे बहुत बेहतर तरीके से हूगो मर्सियर और डान स्पर्बर ने अपनी पुस्तक “दि एनिग्मा ऑफ रीज़न” में समझाया है. यह पुस्तक विमर्श के क्षेत्र में उतनी चर्चित नहीं हो सकी, लेकिन इंसानी नस्ल के सोचने समझने की क्षमता और सही या गलत के बीच फैसला करने की “रेशनलिटी” के संदर्भ में इस किताब ने बिलकुल नयी प्रस्थापना दी है जिस पर मुकम्मल बात होना बाकी है.
यदि हम लेखकद्वय को मानें, तो चार सौ पन्ने की किताब का कुल निचोड़ यह निकलता है कि मनुष्य की कुल तर्कक्षमता और विवेक का काम उसकी पूर्वधारणाओं को पुष्ट करना है. वे कहते हैं कि मनुष्य की रेशनलिटी सही या गलत का फैसला करने के लिए नहीं है बल्कि जिसे सही मानती है उसे सही ठहराने के लिए है. वे सवाल उठाते हैं कि यदि धरती पर मनुष्य ही सोचने समझने वाला तर्कशील प्राणी है तो फिर वह अतार्किक हरकतें और बातें क्यों करता है? इसके बाद की विवेचना को समझने के लिए यह किताब पढ़ी जानी चाहिए, लेकिन मूल बात वही है कि मीडिया का संकट दरअसल हमारी सांस्कृतिकता और मनुष्यता का संकट है जिसमें हमारा अतीत, हमारे सामुदायिक अहसास, पृष्ठभूमि, आर्थिक हालात, सब कुछ ��क साथ काम करते हैं.
चूंकि मीडिया की गति खुद मीडिया नहीं तय करता, उसकी डोर अपने मालिकान से भी ज्यादा राजनीति और समाज के हाथों में है इसलिए आने वाले दिनों में यह मीडिया समाज की गति के हिसाब से ही अपनी भूमिका निभाएगा. जाहिर है यह भूमिका समुदायों से निकलने वाली आवाजें तय करेंगी. वे वास्तविक समुदाय हों या कल्पित. इसे ऐसे समझें कि अगर राजनीति समुदाय विशेष के किसी कल्पित भविष्य की बात करेगी तो मीडिया उससे अलग नहीं जाएगा. यदि हिंदू राष्ट्र एक कल्पना है तो मीडिया उस कल्पना को साकार करने तक की दूरी तय करेगा. यदि रामराज्य एक कल्पना है तो मीडिया रामराज्य लाने का काम करेगा भले ही खुद उस कल्पना में उसका विश्वास न हो. “कल्पित समुदायों” और “भूमियों” की अवधारणा ध्रुवीकृत समाज में बहुत तेज़ काम करती है. इसी तर्ज पर काल्पनिक दुश्मन गढ़े जाएंगे, काल्पनिक दोस्त बनाए जाएंगे, काल्पनिक अवतार गढ़े जाएंगे. यह सब कुछ मीडिया उतनी ही सहजता से करेगा जितनी सहजता से उसने आज से पंद्रह साल पहले भूत, प्रेत, चुड़ैलों की कहानियां दिखायी थी.
ऐसा करते हुए मीडिया और उसमें काम करने वाले लोग इस बात से बेखबर होंगे कि वे किनके हाथों में खेल रहे हैं. एक अदृश्य गुलामी होगी जो कर्इ अदृश्य गुलामियों को पैदा करेगी. ठीक वैसे ही जैसे गूगल का सर्च इंजन काम करता है. मीडिया की भूमिका क्या और कैसी होगी, इसे केवल गूगल के इकलौते उदाहरण से समझा जा सकता है. अमेरिका में 2012 के चुनाव में गूगल और उसके आला अधिकारियों ने 8 लाख डॉलर से ज्‍यादा चंदा बराक ओबामा को दिया था जबकि केवल 37,000 डॉलर मिट रोमनी को. अपने शोध लेख में एप्‍सटीन और रॉबर्टसन ने गणना की है कि आज की तारीख में गूगल के पास इतनी ताकत है कि वह दुनिया में होने वाले 25 फीसदी चुनावों को प्रभावित कर सकता है. प्रयोक्‍ताओं की सूचनाएं इकट्ठा करने और उन्‍हें प्रभावित करने के मामले में फेसबुक आज भी गूगल के मुकाबले काफी पीछे है. जीमेल इस्‍तेमाल करने वाले लोगों को यह नहीं पता कि उनके लिखे हर मेल को गूगल सुरक्षित रखता है, संदेशों का विश्‍लेषण करता है, यहां तक कि न भेजे जाने वाले ड्राफ्ट को भी पढ़ता है और कहीं से भी आ रहे मेल को पढ़ता है. गूगल पर हमारी प्राइवेसी बिलकुल नहीं है लेकिन गूगल की अपनी प्राइवेसी सबसे पवित्र है.
जैसा कि एडवर्ड स्‍नोडेन के उद्घाटन बताते हैं, हम बहुत तेज़ी से एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जहां सरकारें और कॉरपोरेशन- जो अक्सर मिलकर काम करते हैं- हममें से हर एक के बारे में रोज़ाना ढेर सारा डेटा इकट्ठा कर रहे हैं और जहां इसके इस्‍तेमाल को लेकर कहीं कोई कान���न नहीं है. जब आप डेटा संग्रहण के साथ नियंत्रित करने की इच्‍छा को मिला देते हैं तो सबसे खतरनाक सूरत पैदा होती है. वहां ऊपर से दिखने वाली लोकतांत्रिक सरकार के भीतर एक अदृश्‍य तानाशाही आपके ऊपर राज करती है.
आज एनपीआर, एनआरसी, सीएए पर जो बवाल मचा हुआ है उसके प्रति मुख्यधारा के मीडिया का भक्तिपूर्ण रवैया देखकर आप आसानी से स्नोडेन की बात को समझ सकते हैं.
सांस्कृतिक विकल्प का सवाल
मीडिया और तकनीक के रास्ते सत्‍ता में बैठी ताकतों की इंसानी दिमाग पर नियंत्रण कायम करने की इच्‍छा और उनकी निवेश क्षमता का क्‍या कोई काट है? भारत जैसे देश में, जो अब भी सांस्‍कृतिक रूप से एकाश्‍म नहीं है, किसी भी सत्ता के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट संस्कृति ही होती है. मीडिया, संस्कृति का एक अहम अंग है. इसीलिए हम पाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नारे राजनीतिक नहीं, सांस्‍कृतिक होते हैं, जो मीडिया को आकर्षित कर सकें. इन्‍हीं सांस्‍कृतिक नारों के हिसाब से प्रच्‍छन्‍न व संक्षिप्‍त संदेश तैयार करके फैलाये जाते हैं. क्‍या किसी और के पास भाजपा के बरअक्स कोई सांस्‍कृतिक योजना ह���?
पिछले कुछ वर्षों से भारत में भाजपा के राज के संदर्भ में विपक्षी विमर्श ने सबसे ज्‍यादा जिस शब्‍द का प्रयोग किया है वह है ''नैरेटिव''. नैरेटिव यानी वह केंद्रीय सूत्र जिस पर राजनीति की जानी है. हारा हुआ पक्ष हमेशा मानता है कि जीते हुए के पास एक मज़बूत नैरेटिव था. हां, यह शायद नहीं पूछा जाता कि विजेता के नैरेटिव के घटक क्‍या-क्‍या थे. आखिर उन घटकों को आपस में मिलाकर उसने एक ठोस नैरेटिव कैसे गढ़ा. सारे वाद्य मिलकर एक ऑर्केस्‍ट्रा में कैसे तब्‍दील हो गये.
ध्‍यान दीजिएगा कि भारत की किसी भी विपक्षी राजनीतिक पार्टी के पास सांस्‍कृतिक एजेंडा नहीं है. रणनीति तो दूर की बात रही. कुछ हद तक अस्मिताओं को ये दल समझते हैं, लेकिन सारा मामला सामाजिक न्‍याय के नाम पर आरक्षण तक जाकर सिमट जाता है. भाजपा के सांस्‍कृतिक नारे व संदेशों पर बाकी दलों ने अब तक केवल प्रतिक्रिया दी है. अपना सांस्‍कृतिक विमर्श नहीं गढ़ा. लिहाजा, वे जनता में जो संदेश पहुंचाते हैं उनका कोई सांस्‍कृतिक तर्क नहीं होता. कोई मुलम्‍मा नहीं होता. वे भाजपा की तरह प्रच्‍छन्‍न मैसेजिंग नहीं कर पाते. यह सहज बात कोई भी समझ सकता है कि आपके पास सारे हरबे हथियार हों तो क्‍या हुआ, युद्धकौशल का होना सबसे ज़रूरी है. जब संदेश ही नहीं है, तो माध्‍यम क्‍या कर लेगा? मीडिया क्या कर लेगा?
द इकनॉमिस्‍ट पत्रि��ा के मई 2019 अंक में यूरोप के बाहरी इलाकों की राजनीति पर एक कॉलम छपा था जिसमें एक बात कही गयी थी जो भारत पर भी लागू होती है- ''यूरोप की राजनीति पर सांस्‍कृतिक जंग ने कब्‍ज़ा कर लिया है और वाम बनाम दक्षिण के पुराने फ़र्क को पाट दिया है.'' भारत में भी सांस्‍कृतिक युद्ध ही चल रहा है लेकिन इसे कभी कहा नहीं गया. तमाम दलों ने 2019 के आम चुनाव में डेटा एजेंसियों, पोल प्रबंधकों, इमेज प्रबंधकों, पीआर कंपनियों, ईवेंट मैनेजरों का सहारा लिया लेकिन भाजपा के अलावा किसी को नहीं पता था कि सांस्‍कृतिक मोर्चे पर क्‍या लाइन लेनी है. राहुल गांधी ने राम के अलावा छोटे-छोटे भगवानों के मंदिरों में चक्‍कर लगाकर जनता से जुड़ने की कोशिश तो की, लेकिन किसी ठोस सांस्‍कृतिक रणनीति और नैरेटिव के अभाव में इसका लाभ भी पलट कर भाजपा को मिला.
जवाहरलाल नेहरू के जिंदा रहने तक कांग्रेस की राजनीति में एक सांस्‍कृतिक आयाम हुआ करता था. महात्‍मा गांधी के ''रघुपति राघव राजा राम'' में प्रचुर सांस्‍कृतिक नैरेटिव था और नेहरू के साइंटिफिक टेम्‍पर का भी एक सांस्‍कृतिक आयाम था. इंदिरा गांधी के दौर से मामला विशुद्ध सत्‍ता का बन गया और कांग्रेस की राजनीति से संस्‍कृति का आयाम विलुप्‍त हो गया. इसका नतीजा हम आज बड़ी आसानी से देख पाते हैं.
भूखा मीडिया, नदारद नैरेटिव
मीडिया को आज की तारीख में नैरेटिव चाहिए. नारे चाहिए. संदेश चाहिए. उसकी खुराक उसे नहीं मिल रही है. एक बार को मीडिया के सामाजिक दायित्व की अवधारणा को किनारे रख दें, अपनी मासूमियत छोड़ दें. इसके बाद मीडिया से कोई सवाल पूछने से पहले खुद से हम क्या यह सवाल पूछ सकते हैं कि हमारे पास मीडिया को देने के लिए क्या है? 
कोई चारा? कोई चेहरा? कोई नारा? कोई गीत? कोई भाषण? याद करिए यह वही मीडिया है जिसने जेल से छूटने के बाद कन्हैया कुमार का भाषण दिखलाया था. उसके बाद क्या किसी ने उस दरजे का एक भी भाषण इस देश में दिया? यह मीडिया का बचाव नहीं है. यहां केवल इतना समझने वाली बात है कि मीडिया अपने आप नैरेटिव खोजने नहीं जाएगा. यह पीड़ितों की लड़ाई अपनी ओर से नहीं लड़ेगा.
इसे मजबूर करना होगा, एजेंडा देना होगा जिसे यह फॉलो कर सके. यह एजेंडा और नैरेटिव मुहैया कराना विपक्ष का काम है, लड़ रही जनता का काम है. यह काम मुश्किल है, नामुमकिन नहीं. अगर आज यह नहीं किया गया तो मीडिया के पास सत्ता का एजेंडा पहले से रखा हुआ है. उसे न तो हिंदू राष्ट्र से कोई परहेज है, न आपके संविधान से कोई प्रेम. वह सब कुछ जलाकर खाक कर देगा. खुद को भी.
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ashokgehlotofficial · 2 years ago
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मुख्यमंत्री निवास पर चिकित्सा विभाग की समीक्षा बैठक को संबोधित किया। राज्य सरकार पूरी प्रतिबद्धता एवं संवेदनशीलता के साथ प्रदेशवासियों को बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा देने की दिशा में कार्य कर रही है और इसी का परिणाम है कि आज राजस्थान चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में मॉडल स्टेट बनकर उभर रहा है। प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री निःशुल्क निरोगी राजस्थान योजना तथा मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं प्रारम्भ की हैं। इसी क्रम में सड़क दुर्घटना पीडितों की जीवन रक्षा के लिए मुख्यमंत्री चिरंजीवी ��ीवन रक्षा योजना की शुरूआत की। राज्य सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि इन सभी योजनाओं का धरातल पर प्रभावी क्रियान्वयन हो। योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि जानकारी के अभाव में कोई इनके लाभ से वंचित न रहे। साथ ही, प्रभावी क्रियान्वयन के लिए योजनाओं की नियमित मॉनिटरिंग एवं समय-समय पर जनता का फीडबैक लिया जाना चाहिए।
राजस्थान आज स्वास्थ्य सेवाओं में देश का अग्रणी राज्य बनकर उभर रहा है। राज्य में बजट का 7 प्रतिशत हिस्सा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जा रहा है। राजस्थान में 88 प्रतिशत परिवार हैल्थ इंश्योरेंस के अर्न्तगत आते हैं जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसका औसत मात्र 41 प्रतिशत है। आज प्रदेश में एमआरआई, सीटी स्केन जैसी महंगी जांचों के साथ-साथ लीवर ट्रांसप्लांट, बोनमैरो ट्रांसप्लांट जैसा महंगा इलाज निशुल्क करवाया जा रहा है। 21.14 लाख मरीजों को 2111.41 करोड़ रूपए के निशुल्क उपचार से लाभांवित किया जा चुका है। निजी अस्पतालों को 21 दिन के अंदर भुगतान किया जा रहा है।
चिरंजीवी योजना के माध्यम से प्रदेशवासियों को महंगे इलाज के भार से मुक्त करने का कार्य किया गया है। कॉकलियर इम्प्लांट, बोनमैरो ट्रांस्प्लांट, ऑर्गन ट्रांस्प्लांट, ब्लड, प्लेट्लेट्स एवं प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन जैसी जटिल स्वास्थ्य सेवाएं भी इस योजना के म���ध्यम से निःशुल्क कर दी गई हैं। आज पूरे भारत में इस योजना की चर्चा हो रही है। अधिकतम लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने के लिए व्यापक स्तर पर इसका प्रचार आवश्यक है। इसके लिए 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर प्रदेशभर में ग्राम सभाएं आयोजित कर आमजन तक इस योजना के बारे में जानकारी पहुंचाई जाएगी। इन ग्राम सभाओं में अधिकारी व अन्य जनप्रतिनिधि उपस्थित रहकर आमजन को चिरंजीवी योजना के बारे में जागरूक करेंगे। जिला प्रशासन योजना के प्रचार-प्रसार हेतु पत्रकारों के साथ-साथ सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स के साथ भी समन्वय करेें व स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अन्य नवाचार भी करें।
बैठक में मुख्यमंत्री चिरंजीवी जीवन रक्षा योजना की शुरूआत के साथ ही बुकलेट का भी विमोचन किया। इस योजना का ट्रायल रन 22 जून 2022 से शुरू किया गया था। जिसके अंतर्गत अब तक 1.23 करोड़ रूपए के उपचार से 700 मरीजों को लाभांवित किया जा चुका है। योजना के अंतर्गत सड़क दुर्घटना में देश के किसी भी राज्य का निवासी घायल व्यक्ति बिना किसी एफआईआर अथवा औपचारिकता के मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना से संबद्ध निजी एवं सरकारी अस्पतालों में 72 घंटों तक निशुल्क उपचार प्राप्त कर सकता है। इसके लिए चिरंजीवी योजना का पात्र होना आवश्यक नहीं है। 72 घंटे के उपरांत गैर चिरंजीवी लाभार्थी मरीज को राजकीय अस्पताल में रैफर किया जाएगा अथवा मरीज स्वेच्छा से निजी अस्पताल में अपने खर्च पर उपचार प्राप्त कर सकता है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, चिकित्सक एवं नर्सिंग समुदाय पूर्ण सेवा भावना के साथ इस महत्वाकांक्षी योजना को सफल बनाने में जुटें जिससे राजस्थान स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बन सके।
बैठक में बताया गया कि बजट में घोषित किए गए 16 चिकित्सा महाविद्यालयों के निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। इनमें से 15 में महाविद्यालय के साथ-साथ चिकित्सालयों के निर्माण का कार्य भी चल रहा है। विभिन्न जिलों में 26 नर्सिंग कॉलेज बनाने का कार्य भी प्रगति पर है जिनके निर्माण उपरांत प्रदेश के सभी जिलों में राजकीय नर्सिंग कॉलेज स्थापित हो जाएंगे। इनमें से 7 नर्सिंग कॉलेज जीएनटीसी भवनों से गत वर्ष प्रारंभ कर दिए गए हैं तथा 19 कॉलेज इस वर्ष से प्रारंभ कर दिए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने निर्माण कार्याें में गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखने तथा सभी जरूरी उपकरण उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि निर्माण कार्य पूरा करने के साथ-साथ शिक्षकों की उपलब्धता भी सुनिश्चिित की जाए। दूर-दराज के क्षेत्रों में पढ़ाने के लिए स्मार्ट क्लासेज एवं टेलीमेडिसिन जैसी तकनीकों का सहारा लिया जाए।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र राज्य सरकार के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है। आमजन को गांव-ढाणी में बेहतरीन चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश सरकार तत्परता के साथ कार्य कर रही है। राज्य में 337 प्राथमिक तथा 194 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र नए खोले गए हैं। सभी स्वास्थ्य केन्द्रों एवं चिकित्सालयों में कार्यभार के अनुसार चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति की जा रही है। साथ ही, प्रसव सुविधाओं को और मजबूत किया गया है इससे राज्य में मातृ एवं शिशु मृत्युदर में क्रमशः 304 एवं 37.7 की कमी आई है। हमारी सरकार ‘राइट टू हैल्थ’ की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। राइट टू हैल्थ बिल को जल्द ही अन्तिम रूप दिया जाएगा। इस बिल में रोगियों के हित में आवश्यक सभी प्रावधान सम्मिलित किए जाएंगे।
बैठक में चिकित्सा एवं स्वाथ्य मंत्री श्री परसादी लाल मीणा, मुख्य सचिव श्रीमती उषा शर्मा, प्रमुख शासन सचिव वित्त श्री अखिल अरोरा, प्रमुख शासन सचिव चिकित्सा शिक्षा श्री वैभव गालरिया, शासन सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डॉ. पृथ्वी राज, चिकित्सा शिक्षा आयुक्त डॉ. घनश्याम सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। साथ ही, प्रदेश के सभी जिलों से जिला कलक्टर, समस्त मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल, सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एवं प्राथमिक चिकित्सा अधिकारी वीसी के माध्यम से जुड़े।
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